
भोपाल से पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर एक बार फिर सुर्ख़ियों में हैं। इस बार मुद्दा है — कपड़े, संस्कार और लिव-इन रिश्तों का। वृंदावन में कथावाचक अनिरुद्धाचार्य से मुलाकात के दौरान उन्होंने सीधे-सपाट शब्दों में कहा:
“जब मां-बाप संस्कार नहीं देंगे तो लड़कियां अर्धनग्न दिखेंगी।”
…और सोशल मीडिया पर जैसे किसी ने “Send” बटन दबा दिया हो — बयान वायरल।
“अर्धनग्नता” बनाम “आधुनिकता”
प्रज्ञा ठाकुर का कहना है कि आजकल स्कूल-कॉलेज की लड़कियां “अर्धनग्न” घूमती हैं। अब यह अर्ध कितना नग्न है, इसकी परिभाषा शायद संस्कार स्केल से तय होती है।
उनका मानना है कि वेस्टर्न कल्चर ने बेटियों को “मर्यादा” से दूर कर दिया है, और लड़कियां जैसे ही बाहर निकलती हैं — संस्कार चप्पल पहनकर घर में छुप जाते हैं।
लिव-इन = सनातन धर्म का अपमान?
अनिरुद्धाचार्य के लिव-इन पर दिए गए बयान का खुला समर्थन करते हुए उन्होंने कहा:
“लिव-इन हमारे समाज में नाम लिए बिना आने वाली बीमारी है। सनातन धर्म में यह पाप है।”
यानि अब लिव-इन भी गुप्त रोग की कैटेगरी में चले गए हैं।
माताओं को बनना होगा “संस्कार CEO”
प्रज्ञा जी का सुझाव है — माएं बेटियों को समय पर घर आना सिखाएं, और पिताओं को बेटों को “कहाँ थे?” पूछने की आदत डालनी चाहिए।
मतलब, अब पैरेंटिंग एक संस्कारी शेड्यूलिंग ऐप हो गई है — जिसमें नोटिफिकेशन आएगा:
“बेटी घर आ गई क्या?”

बॉलीवुड भी आया लपेटे में
उन्होंने पूछा:
“जब बॉलीवुड अश्लीलता परोस रहा था तब लोग क्यों चुप थे?”
शायद साध्वी जी “मुन्नी बदनाम” से अब भी नाराज़ हैं।
जरा सोचिए…
अगर किसी लड़की ने जींस पहन ली, तो संस्कार RIP?
या अगर किसी ने लिव-इन में रहना चुना, तो क्या वो अब “धर्मद्रोही”?
या फिर ये सब “खाप पंचायत अपडेट 2025” है?
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और अनिरुद्धाचार्य के विचार भले ही कुछ लोगों के लिए समाज की सच्चाई हों, पर बोलने का अंदाज़, शब्दों का चुनाव और निष्कर्ष — बहस को संस्कृति से ज्यादा संकीर्णता की ओर ले जा रहे हैं।
हर बार लड़कियों के कपड़ों को “संस्कार मीटर” से मापना, क्या यही नया समाज सुधार है?
